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Amrit vani “अमृत वाणी” (Jain Muni)

पेट तेरा भर सकती है आटे से बनी दो रोटिया फिर क्यों खाता है 

तू बन्दे बेजुबा की बोटिया शाकाहार सबसे बड़ा पुण्य है 

जैन धर्म में जीव हत्या को सबसे बड़ा पाप माना है l


ऐसा कोई धर्म नहीं जिसमे किसी निर्दोष बेजुबा की हत्या करना या मांस का सेवन बताया गया हो . हिन्दू धर्म में तो ये एकदम वर्जित है , ऐसा करने से सात पीढ़ी पाप के भागीदार होते है किसी एक के किये हुए बुरे कर्मो का फल सबको भोगना पड़ता है . दुनिया में किसी भी धर्म में मांस के सेवन को नहीं कहा गया है चाहे वो मुस्लिम धर्म हो या क्रिस्चन सब धर्मो में अहिंसा का उल्लेख मिलता है, लेकिन फिर भी खुद से स्वार्थ के लिए बेजुबा जानवर की मारा जाता है उसे अपने पेट में जगह देते है .. अरे मुर्ख प्राणी मुर्दों की जगह तो श्मशान है अगर कोई मर जाता है (चाहे वो कितना भी प्रिय रहा हो उसके बिना रह नहीं पाए) लेकिन मरने के बाद उसकी जगह सिर्फ शमशान ही होना है क्या कभी आपने सुना है के किसी ने अपने मरे हुए प्रिय जो घर में जगह दी हो या कबी किसी ने मरने के बाद किसी को घर पर रखा है … नहीं बिलकुल नहीं ,, घर पर भी केवल जिन्दा लोगो को रहने का हक़ है मरने के बाद तो उसे जल्दी से जल्दी वहा से निकालने की तेयारी शुरु हो जाती है और जब उसे निकला नहीं जाता घर पर चूल्हा नहीं जलता उसके अंतिमसंस्कार के बाद नहाधोकर कुछ कहते है .ये नियम हमारा बनाया हुआ नहीं है प्रकति का ये नियम है उसके वावजूद कुछ लोग मरे हुए हुए जानवर को घर लाकर खाते है
अब इसे उनकी नादानी कहोगे या पागलपन ये सोचना आपको है समाज को बचाना है आने वाले पीढ़ी को संस्कारवान बनाओ उनका जीवन ख़राब मत करो सोचिये ज़रा ..

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